चोटी की पकड़–103
तैतीस
प्रभाकर सचेत हो गया।
मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर।
देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत से हैं।
श्री रघुनाथजीवाली छत से, जल भरनेवाले कहारों से, दिलावर पानी चढ़वा लेता है।
उसी जीने से दिन रहते-रहते नौकर और पाचक एक दफा बाहर की हवा खा आते हैं।
मुन्ना जमादार से मिली। जमादार के होश फाख्ता थे। राजा को बुआ के गायब होने की खबर नहीं दी गई।
मुन्ना को देखने पर साथी का बल मिला। रास्ता निकालने की सोची। पूछा, "क्या इरादा है?"
मुन्ना ने कहा, "बुआ लापता हैं, यह सबसे खतरनाक है।"
"क्या तअज्जुब, रुस्तम ने उड़ा दिया हो।" जमादार ने कहा।
"हो सकता है, मगर बात झूठ भी हो सकती है। पहले पता लगा लेना चाहिए। एक बात जँचती है। उधर एक आदमी रहता है। वह कोठी में ही रहता है। वह कौन है, उसका हाथ हो सकता है।"
हाँ," जमादार सँभले, "राजा का गुप्त रूप है, यह रामफल से सुना है। उन लोगों की आमदरफ्त दूसरी है। वहाँ पुजारीजी का हाथ है।"
"तुमको यह नहीं मालूम, रहनेवाला काला है या गोरा है?"
जमा.- "या एक है या तीन, नहीं।"
मुन्ना-- "एक दूसरी शाख है?"
जमा.- "हां।"
मुन्ना- "माई के लाल बहुत हैं।"
जमा..- "अब बचना कठिन है।"
मुन्ना- "जहाँ तक हो आँट पर न चढ़ो।"
जमा.- "कैची काटती हो?"
मुन्ना- "हमारे ही साथ सती होना है।"
जमा.- "तभी तो कहा, कैंची काटती है।"
मुन्ना- "बस, अब साथ न छोड़ो। अगर भगें तो साथ।"